दूरियां जितनी भी हो
खुद को समझती हूँ मैं
रोज बस इसी तरह ...
तेरी ख़ुशबू ओढ़ कर सो जाती हूँ मैं
वो एकाकीपन का मिलना
तेरी मुस्कान पे मेरे अधरों का खिलना
रोज़ बस इसी तरह ...
यादों के भंवर में खो जाती हूँ मैं
ये बेरुखी ये फासले
कहीं कम न हो जाये मेरे हौसले
रोज़ बस इसी तरह ..
क्यूँ ये सोच के घबरा जाती हूँ मैं
न हो भले हाथों में हाथ
तू हमेशा है मेरे साथ
रोज़ बस इसी तरह ...
यूँ गिर के संभल जाती हूँ मैं
तेरी ख़ुशबू ओढ़ के सो जाती हूँ मैं !!!