मन में दबी कुछ बातों को
कुछ अनकहे जज़्बातों को
क्यों छुआ तूने अविरल
मन में हो गयी क्यों हलचल
वर्षो से जो मौन खड़े थे
निर्मोह चुपचाप बढ़े थे
उन स्थिर चट्टानों से
क्यों बहती अश्रुधारा कलकल
मन में हो गयी क्यों हलचल
जग ने मुझको निश्छल जाना
गुण और स्वाभाव से स्थिर माना
आज क्यों अनायास ही
एक चक्रवात उठता है प्रतिपल
मन में हो गयी क्यों हलचल
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