Monday, June 15, 2015

मुक्तक

तुझसे ऐसे मिली की मैं घुलती रही
मोम के जैसे ही मैं पिघलती रही
इतनी नज़दीकियाँ होंगी सोचा न था
प्यार के चाक मैं यूँही सिलती रही

अपने सपनो को तुझसे सजाया करूँ,
जी न पाऊँ मैं ,चाहे तेरे संग मरूँ,
अब तो ले ही लिया मैंने ये फैसला-
प्यारे रंगों से तेरा मैं जीवन भरूँ।

इन हवाओं में खुशबू सी घुलती रही,
मोम के जैसे मैं भी पिघलती रही,
होंगी नज़दीकियाँ ये न सोचा कभी
उसके साँचे में मैं यूँ ही ढलती रही।
~विभूती

Wednesday, June 10, 2015

हाँ सुना था ये मैंने किसी से कभी
रूह से रूह का मेल होता तभी
ढूंढती मैं रही, सोचती मैं रही
अब ये जाना की तुझसे हैं रिश्ते सभी

भाव तुमने दिया है मेरे गीत को।
दिल से जाना है तुमने मेरी प्रीत को।
प्यार कर तो लिया आज खालें कसम
अब निभाते रहें नेह की रीत को।

mere hanste hothon ko aur hansane ye kaun aaya hai..........
meri saji duniya ko aur sajaane ye kaun aaya hai.....
dard jo bhi mile un garm sard mausamon me...........
un zakhmon pe marham lagaane ye tu aaya hai.....