तुम ही हो मेरे भाव
तुम से ही है मेरा हर चाव
लेकिन हर भाव व चाव जहाँ थम जाएँ
वो तुम में ही है मेरा अंतिम पड़ाव
Tuesday, August 4, 2015
Monday, June 15, 2015
मुक्तक
तुझसे ऐसे मिली की मैं घुलती रही
मोम के जैसे ही मैं पिघलती रही
इतनी नज़दीकियाँ होंगी सोचा न था
प्यार के चाक मैं यूँही सिलती रही
अपने सपनो को तुझसे सजाया करूँ,
जी न पाऊँ मैं ,चाहे तेरे संग मरूँ,
अब तो ले ही लिया मैंने ये फैसला-
प्यारे रंगों से तेरा मैं जीवन भरूँ।
इन हवाओं में खुशबू सी घुलती रही,
मोम के जैसे मैं भी पिघलती रही,
होंगी नज़दीकियाँ ये न सोचा कभी
उसके साँचे में मैं यूँ ही ढलती रही।
~विभूती
Wednesday, June 10, 2015
हाँ सुना था ये मैंने किसी से कभी
रूह से रूह का मेल होता तभी
ढूंढती मैं रही, सोचती मैं रही
अब ये जाना की तुझसे हैं रिश्ते सभी
भाव तुमने दिया है मेरे गीत को।
दिल से जाना है तुमने मेरी प्रीत को।
प्यार कर तो लिया आज खालें कसम
अब निभाते रहें नेह की रीत को।
mere hanste hothon ko aur hansane ye kaun aaya hai..........
meri saji duniya ko aur sajaane ye kaun aaya hai.....
dard jo bhi mile un garm sard mausamon me...........
un zakhmon pe marham lagaane ye tu aaya hai.....
Tuesday, May 26, 2015
सोचती हूँ कि..
यूँ तो ज़िन्दगी
बसर हो ही जाती
तू अनायास ही
अपना प्यार लिए
इन आँखों के रस्ते
दिल में उतर गया
और घर कर लिया।
मैं डरी, फिर भी
तेरा हाथ थामें
हिम्मत कर के
आगे बढ़ी,
बढ़ती चली गयी
तेरे प्यार में यूँ
सराबोर हो गयी।
अब,
आलम ये है
की तू रोकता है
मैं फिर भी चलती हूँ
तेरा साथ पाकर
नयी सी हो गयी हूँ
खुद पर ही
प्यार आता है
आइना भी यूँ
मुझे देख कर
मंद मंद मुस्काता है।
खोयी खोयी सी रहती हूँ
फिर भी,
ख्याल तेरा रहता है
साँसों के साथ
प्यार तेरा बेहता है
तेरी ख़ुशबू
मेरे चारों ओर रहती है
और मैं फिर
ये सोचने लगती हूँ
की
यूँ तो ज़िन्दगी
बसर हो ही जाती
तूने अपने प्यार से
एक नयी जान डाल दी।
Monday, May 18, 2015
विडम्बना
सोच रही हूँ जीलूं अपना जीवन
इन कुछ पलों के सहारे
फिर न कुछ खोना न पाना
कुछ पल ,
सिर्फ और सिर्फ मेरे तुम्हारे।
फिर सोचती हूँ , क्यों न ये जीवन
इन कुछ पलों सा हो जाए
जो कुछ खोया..वो पाया
उन कुछ पलों सा,
जब तू मेरा सिर्फ मेरा हो जाये|
Thursday, April 16, 2015
काश !!
वो अनकही बातें
वो अनखुले राज़
जिनको मैं खुद न समझ सकी
काश तुम्हें समझा पाती।
वो दबी हुयी सी
मंद मंद सिसकियाँ
जिनको मैं खुद न सुन सकी
काश तुम्हें सुना पाती।
वो डरी हुयी सी
घबराहट भरी धड़कनें
जिन्हें महसूस न कर सकी
काश तुम्हें बता पाती।
Tuesday, April 7, 2015
मन की हलचल
मन में दबी कुछ बातों को
कुछ अनकहे जज़्बातों को
क्यों छुआ तूने अविरल
मन में हो गयी क्यों हलचल
वर्षो से जो मौन खड़े थे
निर्मोह चुपचाप बढ़े थे
उन स्थिर चट्टानों से
क्यों बहती अश्रुधारा कलकल
मन में हो गयी क्यों हलचल
जग ने मुझको निश्छल जाना
गुण और स्वाभाव से स्थिर माना
आज क्यों अनायास ही
एक चक्रवात उठता है प्रतिपल
मन में हो गयी क्यों हलचल