वो अनकही बातें
वो अनखुले राज़
जिनको मैं खुद न समझ सकी
काश तुम्हें समझा पाती।
वो दबी हुयी सी
मंद मंद सिसकियाँ
जिनको मैं खुद न सुन सकी
काश तुम्हें सुना पाती।
वो डरी हुयी सी
घबराहट भरी धड़कनें
जिन्हें महसूस न कर सकी
काश तुम्हें बता पाती।
वो अनकही बातें
वो अनखुले राज़
जिनको मैं खुद न समझ सकी
काश तुम्हें समझा पाती।
वो दबी हुयी सी
मंद मंद सिसकियाँ
जिनको मैं खुद न सुन सकी
काश तुम्हें सुना पाती।
वो डरी हुयी सी
घबराहट भरी धड़कनें
जिन्हें महसूस न कर सकी
काश तुम्हें बता पाती।
मन में दबी कुछ बातों को
कुछ अनकहे जज़्बातों को
क्यों छुआ तूने अविरल
मन में हो गयी क्यों हलचल
वर्षो से जो मौन खड़े थे
निर्मोह चुपचाप बढ़े थे
उन स्थिर चट्टानों से
क्यों बहती अश्रुधारा कलकल
मन में हो गयी क्यों हलचल
जग ने मुझको निश्छल जाना
गुण और स्वाभाव से स्थिर माना
आज क्यों अनायास ही
एक चक्रवात उठता है प्रतिपल
मन में हो गयी क्यों हलचल