Thursday, April 16, 2015

काश !!

वो अनकही बातें
वो अनखुले राज़
जिनको मैं खुद न समझ सकी
काश तुम्हें समझा पाती।

वो दबी हुयी सी
मंद मंद सिसकियाँ
जिनको मैं खुद न सुन सकी
काश तुम्हें सुना पाती।

वो डरी हुयी सी
घबराहट भरी धड़कनें
जिन्हें महसूस न कर सकी
काश तुम्हें बता पाती।

Tuesday, April 7, 2015

मन की हलचल

मन में दबी कुछ बातों को
कुछ अनकहे जज़्बातों को
क्यों छुआ तूने अविरल
मन में हो गयी क्यों हलचल

वर्षो से जो मौन खड़े थे
निर्मोह चुपचाप बढ़े थे
उन स्थिर चट्टानों से
क्यों बहती अश्रुधारा कलकल
मन में हो गयी क्यों हलचल

जग ने मुझको निश्छल जाना
गुण और स्वाभाव से स्थिर माना
आज क्यों अनायास ही
एक चक्रवात उठता है प्रतिपल
मन में हो गयी क्यों हलचल